Disclaimer: This poem is written from a perspective of a five year old kid and how he sees a “Sunday” and feels for it.
हफ्ते में दिन होते हैं सात पर अच्छा सिर्फ इतवार लगता है,
मुझे हमेशा इसका इंतज़ार रहता है।
पाप की छुट्टी, मम्मी का प्यार
इस दिन हर चीज़ का भण्डार रहता है।
मम्मी मुझे हर दिन जल्दी उठाती है
लेकिन इतवार को खूब आराम रहता है।
लेट उठना और लेट नहाने
का लाइसेन्स अपने आप मिल जाता है।
घर भी बड़ा अलग सा लगता है
मम्मी और पापा का खुशदिल मिज़ाज़ रहता है
न फ़ोन की खिटपिट, न होमवर्क का झंझट
इतवार को यहाँ सिर्फ प्यार रहता है।
हफ्ते में दिन होते हैं सात पैर अच्छा सिर्फ इतवार लगता है।
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