कलियुग सार

खड़ा धनुरधर रणभूमि में
हर मुश्किल से लड़ जाने को।
है मन दबंग, छिड़ गयी जंग
निर्भय, अडिग मिट जाने को।
है कहाँ श्याम इस क्षण में
इसे हित अनहित समझाने को?

हे पार्थ! जो तुमने साधा बाण
होगी अति जीवन की हानि
क्रोध में बस है झूठी शान
जायेगी व्यर्थ कुर्बानी
न हो अबोध, न तुम अज्ञान
क्या हिंसा से पाता है प्राणी?

न कर्म किसी के सुन्दर हैं
न धर्म है बोध है अब इनको
हर पल बहलाते फुसलाते हैं
माया के लोभी इस मन को
फल की इच्छा ही हर पल है
इस लोलुपता के मारे को।

है जंग छिडी यहाँ हर दिन की
न तीर कमान न लश्कर से।
दांव लगे ईमान कई,
होते हैं वार असुलो पर,
हर जीव का मोल व कीमत है
न जीवन का है सार कोई।

परिवर्तन ही यह ऐसा है
अच्छे बुरे की समझ किसे?
पाने-खोने का खेल है सब,
जीते हैं बस यह आज में अब।
न खाली हाथ यह आये थे
न खाली हाथ यह जायेंगे
ऐसा ही है आभास इन्हे ,
इसीलिए मरने से डरते हैं।

कलियुग का कल अब ओझल है
है भार बहुत अब भूलों का
न उठा शस्त्र अब ऐसे में,
की स्वयं यह हर पल लड़ते हैं।
खुद के जीवन से खिलवाड नए
जैसा करते हैं भरते हैं ……

2 Comments

  1. the context of the poem is totally different from what u wrote in english which was more about a soldier…but i like this one too bcoz its a very valid point…but war is inevitable coz peace is not forever anywhere…wat i like abt the english one is that it desrcibes the mind of the soldier in the battlefield..n the beauty of the hindi one is..first,it was simple hindi so i had no problems undestanding it and the message is conveyed directly..n ofcourse it had a good rythm…i actually enjoyed reading it….

    thanks for taking my request..

    Reply
  2. ohh u wanted exact translation of it… I just thought u interested in a war poem re.. mafi..i will try translating that one.. this was just random stuff. as always..

    Reply

Your email address will not be published.